यह यात्रा है सम्बन्धो की | अपनों के लिए अपनों की अपनों के बिच, जो समेटे है आरोग्य, आनंद और हर परीस्थिति से उबर जाने का सामर्थ्य | परिवार सशक्त होगा तो समाज सुदृण होगा तब ही राष्ट्र शक्तिवान बन पायेगा | परिवार व्यक्ति की प्रथम पाठशाला है | प्रेम, सद्भावना, सत्कार, स्नेह, परोपकार, शिष्टाचार हमारे संस्कार है, फिर आज समाज इतना वंचित क्योँ ? क्योँ इतना अवसाद ! सुसंकृत समाज का निर्माण कीजिये |
रिश्ते बहुमूल्य हैं इन्हे सहेजकर रखिए | कटुता को भूलकर प्रेम के फूल चुनकर तो देखिए, आपको इनका महत्व समझ में आ जायेगा | ये वो नींव है जो हमारे जीवन को सुदृण आधार प्रदान करती है | यही यात्रा है 'अनुभव से अनुभूति तक' की |